राजस्थान हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाते हुए जोधपुर ग्रामीण के भोपालगढ़ वृत्ताधिकारी (CO) भूराराम खिलेरी के एपीओ (APO) और तबादला आदेशों को निरस्त कर दिया है। जस्टिस फरजंद अली की एकल पीठ ने सोमवार को अपने रिपोर्टेबल जजमेंट म
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कोर्ट ने पुलिस महानिदेशक (DGP) को निर्देश दिया है कि याचिकाकर्ता को तत्काल प्रभाव से सीओ भोपालगढ़ के पद पर बहाल किया जाए।
सरकार और सीओ के बीच क्या है विवाद:
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि भूराराम खिलेरी, जो बीकानेर में डीएसपी, वीमेन क्राइम इन्वेस्टिगेशन सेल में तैनात थे, को 7 अक्टूबर 2024 के आदेश से जोधपुर ग्रामीण जिले के भोपालगढ़ में सर्कल ऑफिसर के रूप में स्थानांतरित किया गया था। उन्होंने 14 अक्टूबर 2024 को भोपालगढ़ में ज्वाइन किया।
17 अक्टूबर को ग्रामीणों ने हेमंत शर्मा नामक व्यक्ति के खिलाफ सोशल मीडिया पर जातिसूचक टिप्पणी की शिकायत की। सीओ के निर्देश पर एसएचओ ने जांच की और आरोपी हेमंत शर्मा को शांति भंग में गिरफ्तार किया।
बिना जांच के APO आदेश
इसके बाद 21 अक्टूबर 2025 को पीएचक्यू ने बिना किसी विभागीय जांच या अनुशासनात्मक कार्यवाही के खिलेरी को अवेटिंग पोस्टिंग ऑर्डर (APO) में रख दिया और उनका मुख्यालय जयपुर पुलिस मुख्यालय कर दिया। 24 अक्टूबर 2025 को जोधपुर ग्रामीण के एसपी ने खिलेरी को भोपालगढ़ से मुक्त कर दिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि राजस्थान सिविल सर्विसेज रूल्स 1951 के नियम 25-ए के तहत APO आदेश जारी करने से पहले विशिष्ट शर्तें पूरी करना जरूरी है, जो इस मामले में नहीं की गईं।
हाईकोर्ट का पहला आदेश: 29 अक्टूबर का स्टे
याचिकाकर्ता ने एपीओ आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 29 अक्टूबर को एपीओ और रिलीविंग आदेश पर रोक लगा दी थी।
कोर्ट ने अपने अंतिम फैसले में कहा, “एक बार जब कोर्ट ने रोक लगा दी, तो यह विभाग की जिम्मेदारी थी कि वे याचिकाकर्ता को वापस भोपालगढ़ में कार्य करने देते।” लेकिन अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया और उन्हें जयपुर मुख्यालय में ही रखकर पुष्कर मेले में ड्यूटी पर लगा दिया।
तबादला आदेश में तथ्यात्मक गलती
कोर्ट के स्टे के बावजूद, विभाग ने 1 नवंबर को एक तबादला सूची जारी की, जिसमें भूराराम का तबादला “सीओ भोपालगढ़ से असिस्टेंट कमांडेंट, मेवाड़ भील कोर, बांसवाड़ा” कर दिया गया।
कोर्ट ने इस पर हैरानी जताते हुए कहा कि जब अधिकारी 24 अक्टूबर से ही जयपुर मुख्यालय में था और उसे वापस भोपालगढ़ भेजा ही नहीं गया, तो उसका तबादला भोपालगढ़ से कैसे दिखाया जा सकता है? कोर्ट ने कहा कि सही शब्द “एपीओ, मुख्यालय जयपुर से बांसवाड़ा” होने चाहिए थे। कोर्ट ने इसे “बिना दिमाग लगाए” (Total non-application of mind) जारी किया गया आदेश बताया।
दूसरा अदालती आदेश: 6 नवंबर का अंतरिम निर्देश
याचिकाकर्ता ने तबादला आदेश को भी चुनौती दी। इस पर कोर्ट ने 6 नवंबर को विस्तृत अंतरिम आदेश पारित किया था। कोर्ट ने उस समय भी सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था, “याचिकाकर्ता का वर्तमान पदस्थापन ‘सीओ भोपालगढ़’ दिखाना प्रथमदृष्टया गलत है, क्योंकि वह पुलिस मुख्यालय के नियंत्रण में काम कर रहा है।” कोर्ट ने 1 नवंबर के तबादला आदेश पर भी रोक लगा दी थी।
दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट की सख्ती को देखते हुए विभाग ने 6 नवंबर को ही (उसी दिन) एक आदेश जारी कर याचिकाकर्ता को वापस भोपालगढ़ जॉइन करने के निर्देश दिए, लेकिन कोर्ट ने इसे “देर से उठाया गया कदम” और “प्रशासनिक विसंगति” माना।
कोर्ट का फैसला: मनमानी बर्दाश्त नहीं
जस्टिस फरजंद अली ने अपने फैसले में लिखा- “न्यायिक आदेश कोई औपचारिकता नहीं हैं, वे अनुपालन की मांग करते हैं। जानबूझकर या लापरवाही से की गई अवहेलना कोर्ट की सत्ता का अपमान है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने 21 अक्टूबर, 24 अक्टूबर और 1 नवंबर के तीनों आदेशों को रद्द करते हुए भूराराम को भोपालगढ़ सीओ के पद पर बने रहने का आदेश दिया है।
मौजूदा नेमीचंद को नई पोस्टिंग के निर्देश
विभाग ने भूराराम की जगह नेमीचंद को भोपालगढ़ लगा दिया था। कोर्ट ने कहा कि नेमीचंद को “प्रशासनिक अधरझूल” (Administrative Limbo) में नहीं रखा जा सकता। कोर्ट ने निर्देश दिया कि विभाग तुरंत नेमीचंद के लिए नई पोस्टिंग का आदेश जारी करे।
ट्रांसफर की छूट, लेकिन शर्त भी:
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि हालांकि वर्तमान आदेशों (21 अक्टूबर, 24 अक्टूबर और 1 नवंबर) को रद्द किया गया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार भविष्य में कभी भी इनका तबादला नहीं कर सकती। लेकिन ट्रांसफर की छूट के साथ ये शर्तें भी रखी गई है-
प्रशासनिक आवश्यकता: कोर्ट ने कहा है कि यदि भविष्य में “प्रशासनिक आवश्यकता” या मजबूरी हो, तो सक्षम प्राधिकारी सीओ का तबादला करने के लिए स्वतंत्र होंगे।
नियमों का पालन अनिवार्य: कोर्ट ने शर्त लगाई है कि ऐसा कोई भी नया तबादला आदेश “कानून, नियमों और तबादला नीतियों के स्थापित सिद्धांतों” के तहत ही जारी किया जाना चाहिए।
नया आदेश जारी करना होगा: सरकार को इसके लिए एक बिल्कुल “नया आदेश” जारी करना होगा, पुराने आदेशों को आधार नहीं बनाया जा सकता।
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