शिक्षा विभाग ने आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने आदेश जारी कर स्पष्ट किया है कि सभी सरकारी स्कूलों में विदेशी कंपनियों के उत्पादों का उपयोग अब पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। स्कूलों में अब सिर्फ सरकारी एजेंसिय
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इस पहल से मेक इन इंडिया मिशन को नई गति मिलेगी और साथ ही ग्रामीण कारीगरों, महिलाओं एवं किसानों की आय में भी बढ़ोतरी होगी। स्वयं सहायता समूहों को भी संबल मिलेगा। निदेशालय ने सभी जिला शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि किसी भी स्तर पर विदेशी उत्पादों की खरीद न की जाए। आदेश के उल्लंघन होने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के साथ राशि की वसूली भी की जाएगी।
ऐसे में अब स्कूलों और छात्रावासों में राजफेड, राजीविका, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड और हैंडलूम बोर्ड जैसी सरकारी एजेंसियों के उत्पादों का ही उपयोग किया जाएगा। शिक्षा विभाग की यह पहल न केवल स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देगी बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाएगी। स्वदेशी का उपयोग करने व विदेशी वस्तुओं पर खर्च रोकने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
स्थानीय कारीगरों, महिलाओं और किसानों को रोजगार के सीधे अवसर सुलभहोंगे। ग्रामीण हस्तशिल्प, खादी और पारंपरिक उद्योगों को नई पहचान मिलेगी। राजीविका के अंतर्गत संचालित स्वयं सहायता समूहों को भी उत्पाद बेचने के लिए प्लेटफार्म मिल जाएगा, जिससे उनकी आय बढ़ेगी।
इन संस्थाओं के उत्पाद खरीदने होंगे
- राजफेड से अनाज, दालें, बीज और उपभोक्ता वस्तुएं।
- राजीविका से पापड़, आचार, स्टेशनरी, मसाले, हर्बल उत्पाद
- खादी बोर्ड से खादी वस्त्र, ऊनी कपड़े, हर्बल साबुन और अगरबत्तियां
- हैंडलूम बोर्ड से कालीन, दरियां, बैग और राजस्थानी परिधान
स्वदेशी के उपयोग से रोजगार के अक्सर बढ़ेंगे
रामगढ पचवारा के मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी रामावतार मीना ने बताया स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग से स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ेगा और नए रोजगार के अवसर पैदा करेगा। सरकारी एजेंसियों से खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी और उत्पाद की गुणवत्ता बनी रहेगी।