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बिम्बिसार
बिम्बिसार का इतिहास और बिम्बिसार की कहानी (Bimbisara Story In Hindi)- बिम्बिसार की उपलब्धियां की विवेचना।

बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) मगध साम्राज्य का सम्राट था जिन्होंने हर्यक वंश की स्थापना की। बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) का शासनकल 558 ईसा पूर्व से 491 ईसा पूर्व तक शासन किया था। बिम्बिसार बौद्ध धर्म के अनुयाई थे लेकिन बाद में उन्होंने रानी चेलमा के उपदेशों से प्राभावित होकर जैन धर्म अपना लिया।

पुराणों के अनुसार बिम्बिसार को “श्रेणिक” नाम से भी जाना जाता हैं। हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार का इतिहास और कहानी (Bimbisara Story In Hindi) बहुत ही रोचक हैं।

अगर आप बिम्बिसार का इतिहास, बिम्बिसार की जीवनी, Bimbisara Story In Hindi और बिम्बिसार की उपलब्धियां जानना चाहते हैं तो इस लेख को पुरा पढ़ें।

बिम्बिसार का इतिहास और बिम्बिसार की कहानी (Bimbisara Story In Hindi)-
  • पुरा नाम Full Name Of Bimbisara- राजा बिम्बिसार.
  • अन्य नामOther Name Of Bimbisara- बिंबिसार, श्रेणिक, खादीसार.
  • जन्म Bimbisara Birth- 558 ईसा पूर्व.
  • मृत्यु Death Of Bimbisara- 491 ईसा पूर्व.
  • पिता का नाम Bimbisara Fathers Name- भाट्टियां.
  • माता का नाम Bimbisara Mothers Name- बिंबी.
  • पत्नी का नाम Bimbisara Wifes Name- चेल्लना, खेमा और कोशाला देवी.
  • पुत्र का नाम Son Of Bimbisara- अजातशत्रु.
  • धर्म- बौद्ध धर्म ( बाद में जैन धर्म अपना लिया).
  • कार्यकाल- 543 ईसा पूर्व से 491 ईसा पूर्व तक.
  • उपलब्धि- हर्यक वंश के संस्थापक.

  • उत्तराधिकारी- आजातशत्रु (पुत्र).

बिंबिसार/ बिम्बिसार की जीवनी (Bimbisara Story In Hindi) बहुत अद्भुद और ऐतिहासिक रही हैं। बिम्बिसार के शासनकाल के दूरगामी परिणाम भी मिले, मौर्य साम्राज्य जैसे विशाल साम्राज्य को स्थापित करने में मदद मिली। राजा बिम्बिसार को मगध राज्य के शुरुआती राजाओं में गिना जाता हैं।

प्रारंभिक दिनों में बिम्बिसार गौतम बुद्ध के अनुयाई थे और बहुत ही कठोरता के साथ बौद्ध धर्म का पालन करते थे। 1543 ईसा पूर्व बिंबिसार ने हर्यक वंश की स्थापना के साथ ही मगध राज्य के कार्यभार को संभाला। शुरू से ही इन्होंने साम्राज्य विस्तार पर ध्यान देना शुरू कर दिया।

बिम्बिसार का विवाह (Bimbisara Story In Hindi and married Life)

कई इतिहासकारों का मानना है कि बिंबिसार/बिम्बिसार ने 500 से भी अधिक रानियों से विवाह किया था। इतिहास में तीन रानियों का विशेष उल्लेख मिलता है। सर्वप्रथम हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार ने कौशल के राजा प्रसेनजीत की बहन से विवाह किया था, जिसका नाम रानी कोशाला देवी था।



दूसरा विवाह इन्होंने रानी चेल्लना से किया जो कि वैशाली के राजा चेतक की पुत्री थी। वहीं राजा बिम्बिसार ने पंजाब प्रांत के मृदु देश की राजकुमारी क्षेमा से भी विवाह किया था।

जैन साहित्य का अध्ययन किया जाए तो इनमें राजा बिम्बिसार के एक और विवाह का प्रमाण मिलता है जो उन्होंने राजकुमारी गणिका आम्रपाली के साथ किया था।

महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) ने लगभग 500 राजकुमारियों से विवाह किया था। इतने विवाह करने का उद्देश्य साम्राज्य विस्तार करना था। अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए अलग-अलग राजा अलग-अलग तरह की रणनीति का उपयोग करते हैं वैसे ही राजा बिंबिसार ने बड़े-बड़े राजवंशों में विवाह करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया था।

बिम्बिसार की प्रशासनिक व्यवस्था

बिम्बिसार का शासनकाल बहुत अच्छा रहा। उनके शासनकाल में प्रजा सुखी, उन्नत, खुशहाल और धन-धान्य से परिपूर्ण थी। बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) प्रजा का पुरा ख्याल रखते थे साथ ही उनके प्रशासन में शामिल कर्मचारियों पर भी उनकी विशेष नजर रहती थी।




बिम्बिसार ने प्रशासनिक कार्यों को आसानी के साथ संचालित करने के लिए अलग-अलग वर्गों में बांट रखा था। बिम्बिसार के प्रशासन में जो उच्च अधिकारी होते थे उन्हें राजभट्ट के नाम से जाना जाता था।

इन अधिकारियों को चार श्रेणियों में विभाजित किया हुआ था जिनमें-

  • सम्बन्थक ( जो सामान्य प्रशासनिक कार्यों को देखते थे).


  • सेनानायक (सेना से संबंधित सभी कार्यों की देखरेख इनकी निगरानी में होता था).
  • वोहारिक (न्यायपालिका से संबंधित कार्य इनके द्वारा किए जाते थे).
  • महामात्त ( राज्य में होने वाले उत्पादन पर लगान वसूलने का काम इनके द्वारा किया जाता था).

बिम्बिसार की प्रशासनिक व्यवस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने प्रत्येक कार्यक्षेत्र को अलग-अलग श्रेणियों और लोगों में बांट रखा था। बिंबिसार की प्रशासनिक व्यवस्था में ना सिर्फ सेना बल्कि न्यायपालिका बहुत ही न्यायोचित थी।

एक छोटे से छोटे व्यक्ति की बात को सुना जाता था और समस्या का समाधान किया जाता था। यही वजह रही कि बिंबिसार (Bimbisara Story In Hindi) के राज में मगध साम्राज्य ने निरंतर विस्तार किया और लोगों का विश्वास भी जीता।

बिम्बिसार द्वारा साम्राज्य विस्तार (Expansion of the Empire by Bimbisara)

544 ईसा पूर्व नागवंश की उपशाखा के रूप में जाने जाना वाला इस क्षत्रिय हर्यक वंश का उदय हुआ था। बिंबिसार (Bimbisara Story In Hindi) को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

बिम्बिसार कि साम्राज्य विस्तार की रणनीति सबसे अलग थी। बिम्बिसार की रणनीति के अनुसार इनका साम्राज्य विस्तार भी हुआ और किसी से मतभेद भी नहीं हुआ। अर्थात यह कहा जाए कि बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) ने प्रेम पूर्वक साम्राज्य विस्तार किया था तो इसमें कुछ भी गलत नहीं होगा।

इतिहास के पन्ने खंगालने पर बिम्बिसार द्वारा साम्राज्य विस्तार की जो नीति सामने आती है, उसके अनुसार मगध के राजा बिम्बिसार ने आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले राजा-महाराजाओं की राजकुमारियों से शादी की, बदले में उन्हें कुछ क्षेत्र भी मिला और सम्मान भी मिला। इस तरह धीरे-धीरे बिंबिसार द्वारा साम्राज्य का विस्तार किया गया।

बिम्बिसार द्वारा साम्राज्य विस्तार की रणनीति के तहतहर्यक वंश साम्राज्य के विस्तार के लिए राजा बिंबिसार (Bimbisara Story In Hindi) ने वैवाहिक संबंधों को आधार बनाया। इन्होने क्रमशः पंजाब की राजकुमारी या फिर ऐसा कहें कि भद्र देश की राजकुमारी क्षेमा, प्रसेनजीत जो कि कौशल के राजा थे उनकी बहिन महाकोशला से विवाह किया और अंत में वैशाली के चेटक की पुत्री जिसका नाम चेल्लना था से विवाह कर लिया और मगध साम्राज्य को विस्तारित किया।



एक कुशल कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक होने की वजह से राजा बिंबिसार (Bimbisara Story In Hindi) ने उस समय के प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक संबंध स्थापित किए और हर्यक वंश के साम्राज्य का विस्तार किया। महावग्ग के अनुसार बिम्बिसार ने लगभग 500 राजकुमारियों से विवाह किया था।

बिम्बिसार का धर्म परिवर्तन

राजा बिम्बिसार बौद्ध धर्म को मानते थे। बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार में बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) ने कोई कमी नहीं रखी। ऐसा कहा जाता है कि बिंबिसार ने सन्यासी गौतम बुद्ध का प्रथम दर्शन पांडव पर्वत के नीचे किया, साथ ही उन्हें अपने राजभवन में भी आमंत्रित किया था। इतिहास में इसका उल्लेख हमें सुत्तनिपात की अट्ठकथा के पब्बज सुत्त में मिलता हैं।

इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि गौतम बुद्ध ने इनका निमंत्रण स्वीकार नहीं किया और अपनी राह पर चलते रहे। निमंत्रण अस्वीकार करने पर राजा बिंबिसार (Bimbisara Story In Hindi) उदास नहीं हुए उन्होंने गौतम बुद्ध को उद्देश्य प्राप्ति के लिए शुभकामनाएं दी और उद्देश्य प्राप्ति के बाद राजगीर (हर्यक वंश की राजधानी) आने का निमंत्रण दिया।



कई वर्ष बीत जाने के बाद गौतम बुद्ध राजगीर में आए। इस तरह प्रारंभ से लेकर लगभग 30 वर्षों तक राजा बिंबिसार बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए कार्य किया।

बिम्बिसार की पत्नी चेल्लमा जैन धर्म को मानती थी, बिम्बिसार ने जब रानी चेल्लमा के उपदेश सुने तो बहुत प्रभावित हुए, और जैन धर्म अपना लिया। इसके साथ ही उन्होंने अपनी राजधानी मगध से स्थानांतरित कर उज्जैन में स्थापित की।

बिम्बिसार की उपलब्धियों की विवेचना (Achievements of Bimbisara)

मगध के राजा बिम्बिसार की उपलब्धियां गिनी जाए तो बहुत समय लग जाएगा लेकिन इस लेख में हम बिम्बिसार की उपलब्धियों के बारे में संक्षिप्त में चर्चा करेंगे कि कैसे हर्यक वंश की स्थापना से लेकर उसके विकास एवं विस्तार के लिए राजा बिंबिसार ने कार्य किया।

अब हम बिम्बिसार की उपलब्धियों की विवेचना या बिम्बिसार की उपलब्धियों का वर्णन करते हैं।

राजा बिम्बिसार की उपलब्धियां निम्नलिखित हैं-

1. बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना की, राजगीर को राजधानी बनाया और मगध साम्राज्य का विकास और विस्तार का श्रेय उन्हें जाता है।

2. इतिहास में राजा बिम्बिसार ऐसे राजा थे जिन्होंने साम्राज्य विस्तार और प्रजा की सुख समृद्धि के लिए कार्य किया। इसी क्रम में उन्होंने अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को इस तरह से संगठित किया कि एक छोटे से छोटे व्यक्ति को न्याय मिल सके और उसकी खुशी का ध्यान रखा जा सके। यह बिम्बिसार की उपलब्धियों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

3. बिम्बिसार की उपलब्धियों में तीसरी सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने आसपास के राजा महाराजाओं से संबंध स्थापित करते हुए साम्राज्य विस्तार किया। जिससे ना सिर्फ राज्य का विस्तार हुआ बल्कि आपसी प्रेम भी बढ़ा।

4. गौतम बुद्ध से प्रभावित होकर बिंबिसार ने बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार में अपने जीवन के अमूल्य 30 वर्ष लगा दिए यह भी बिम्बिसार की मुख्य उपलब्धि रही है।

5. बिम्बिसार के राज्य को भारतवर्ष के स्वर्णिम काल के रूप में देखा जाता है जो कि बिम्बिसार के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

बिम्बिसार की मृत्यु कैसे हुई (How did Bimbisara die?)

बिम्बिसार कि मृत्यु को लेकर इतिहास में तीन तरह की बातें की जाती है। सबसे पहले हम बात करेंगे बौद्ध ग्रंथ विनयपिटक के अनुसार अपने कार्यकाल के दौरान भी बिंबिसार (Bimbisara Story In Hindi) ने उनके पुत्र अजातशत्रु को हर्यक वंश का युवराज घोषित कर दिया था।

लेकिन इतिहासकार बताते हैं कि जल्द ही राज्य की कमान हासिल करने के लिए युवराज अजातशत्रु ने उनके पिता बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) का वध कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) के चचेरे भाई देवदत्त ने बिम्बिसार के खिलाफ षड्यंत्र रचा और युवराज अजातशत्रु को उकसाया, देवदत्त के बहकावे में आकर अजातशत्रु ने बिंबिसार की हत्या कर दी।

“आवश्यक सूत्र” जो कि एक जैन ग्रंथ है, इसमें बिम्बिसार की मृत्यु को लेकर जो वर्णन मिलता है वह थोड़ा अलग है। इसके अनुसार बिम्बिसार के पुत्र अजातशत्रु ने जल्द से जल्द राज्य हथियाने के लिए अपने पिता बिंबिसार को कैद खाने में डाल दिया जहां पर उनकी देखरेख बिम्बिसार की पत्नी चेल्लना ने की।

हर पिता की तरह बिंबिसार (Bimbisara Story In Hindi) को भी उनके पुत्र अजातशत्रु से बहुत प्रेम था। जब यह बात अजातशत्रु को पता चली कि उनके पिता उनसे बहुत प्रेम करते हैं और उन्हें पहले ही युवराज नियुक्त कर चुके हैं, तब अजातशत्रु ने लोहे का डंडा हाथ में लिया और बिम्बिसार की बेड़ियां काटने के लिए कैद खाने में गया। यह दृश्य देखकर जब बिम्बिसार (Bimbisara Story In Hindi) को किसी अनहोनी घटना की आशंका हुई तो उन्होंने जहर खा लिया और इस तरह उनकी मृत्यु हो गई।

इतिहास में बिम्बिसार की मृत्यु को लेकर एक और घटना का जिक्र मिलता है जिसके अनुसार उनके पुत्र अजातशत्रु ने उन्हें कैद खाने में कई दिनों तक भूखा प्यासा रखा जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

(Bimbisara Story In Hindi)

बिम्बिसार (544 ई. पू. से 493 ई. पू.) एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने हर्यक वंश की स्थापना की थी। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने ने ‘गिरिव्रज’ (राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया था। कौशल, वैशाली एवं पंजाब आदि से वैवाहिक सम्बंधों की नीति अपनाकर बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य का बहुत विस्तार किया। बिम्बिसार गौतम बुद्ध के सबसे बड़े प्रश्रयदाता थे।

परिचय

बिम्बिसार का जन्म 558 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था। मगध के राजा बिम्बिसार की राजधानी राजगीर थी। वे पन्द्रह वर्ष की आयु में ही राजा बने और अपने पुत्र ‘अजातसत्तु’ (संस्कृत- अजातशत्रु) के लिए राज-पाट त्यागने से पूर्व बावन वर्ष इन्होंने राज्य किया। प्रसेनजित की बहन और कोसल की राजकुमारी ‘महाकोशला’ इनकी पत्नी और अजातशत्रु की माँ थी। ‘चेल्लना’, ‘खेमा’ अथवा ‘क्षेमा’, ‘सीलव’ और ‘जयसेना’ नामक इनकी अन्य पत्नियाँ भी थीं। विख्यात वीरांगना अम्बापालि से इनका विमल कोन्दन्न नामक पुत्र भी था। बिम्बिसार बुद्ध के उपदेशों से बहुत प्रभावित थे। इनकी पत्नी भिक्षुणी बन गई थीं।[1]

महावग्ग का उल्लेख

‘महावग्ग’, के अनुसार बिम्बिसार की 500 रानियाँ थीं। उसने अवंति, के शक्‍तिशाली राजा चन्द्र प्रद्योत के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाया। सिन्ध, के शासक रूद्रायन तथा गांधार, के मुक्‍कु. रगति से भी उसका दोस्ताना सम्बन्ध था। उसने अंग ,राज्य ,को जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया था। वहाँ अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा नियुक्‍त किया।

साम्राज्य विस्तार की नीति

बिम्बिसार ने हर्यक वंश की स्थापना 544 ई. पू. में की थी। इसके साथ ही राजनीतिक शक्‍ति के रूप में बिहार का सर्वप्रथम उदय हुआ। बिम्बिसार को मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उसने, गिरिव्रज ,(राजगीर) को अपनी राजधानी बनाया। इसके वैवाहिक सम्बन्धों (कौशल, वैशाली ,एवं ,पंजाब) की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। बिम्बिसार एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी शासक था। उसने प्रमुख राजवंशों में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर राज्य को फैलाया।

बौद्ध धर्म के विकास में सहायक

‘सुत्तनिपात’ की [अट्ठकथा] के पब्बज सुत्त के अनुसार बिम्बिसार ने संन्यासी ,गौतम, का प्रथम ,दर्शन, पाण्डव पर्वत, के नीचे अपने ,राजभवन, के गवाक्ष से किया और उनके पीछे जाकर उन्हें अपने राजभवन में आमन्त्रित किया था। गौतम ने इनका निमन्त्रण अस्वीकार किया तो इन्होंने गौतम को उनकी उद्देश्य-पूर्ति हेतु शुभकामनाएँ दी और बुद्धत्व-प्राप्ति के उपरान्त उन्हें फिर से ,राजगीर, आने का निमन्त्रण दिया। तेभतिक जटिल के परिवर्तन के बाद, बुद्ध ,ने राजगीर में पदार्पण करके अपना वचन पूरा किया। बुद्ध और उनके ,अनुयायी, राजकीय अतिथियों, की भाँति ,राजगीर, आए थे। बुद्ध और उनके अनुयायियों ,के लिए ,वेलुवन उद्यान ,दान ,में देने के अपने, प्रण, की पूर्ति दर्शाने के लिए बिम्बिसार ने बुद्ध के हाथ स्वर्ण कलश के पानी से धुलवाए। आगामी तीस वर्षों तक बिम्बिसार ,बौद्ध धर्म, के विकास में सहायक बने।[2]

अंत समय,

बिम्बिसार का अन्त बड़ा दारुण हुआ। ज्योतिषियों की इस भविष्यवाणी के बाद भी कि उनका, पुत्र ,अजातशत्रु ,उनके लिए ,अशुभ, सिद्ध होगा, उन्होंने उसे बड़े, लाड़-प्यार .से पाला। बुद्ध को बिम्बिसार द्वारा दिए गए प्रश्रय से ,देवदत्त, बहुत द्वेष करता था और उसी के, दुष्प्रभाव ,में आकर, अजातशत्रु. ने अपने ,पिता की हत्या ,का ,षड्यन्त्र रचा, जिससे उसकी ,प्रतिष्ठा, और धूमिल हो गई। षड्यन्त्र ,का पता चलने और, पुत्र की, राज्य लिप्सा की तीव्रता को देखकर, बिम्बिसार ,ने स्वयं ही राज्य-त्याग कर दिया और अजातशत्रु राजा बन गया। परन्तु देवदत्त द्वारा पुन: उकसाए जाने पर नए राजा ने बिम्बिसार को बन्दी बना लिया।

पुत्र का अत्याचार,

बिम्बिसार को केवल भूखा रखकर ही मारा जा सकता था। उन्हें एक गरम कारागार में भूखा रखा गया। ‘महाकोशला’ (अजातशत्रु की माँ) के अतिरिक्त किसी को उनसे मिलने की अनुमति नहीं थी। पहले महाकोशला अपने परिधान में एक सुवर्ण-पात्र में भोजन छिपाकर ले गई। उसका पता चलने पर वे अपने पाद-त्राण में भोजन छिपाकर ले गई। उसका भी पता चल गया तो उन्होंने अपने शिरो-वस्र (मोलि) में भोजन छिपाकर ले जाना चाहा। उसका भी पता चल गया तो वे ,सुगंधित जल ,में ,स्नान. करके, अपनी ,देह, को मधु (शहद) से लेपकर गई, जिससे ,वृद्ध राजा ,उसे चाट ले और बच जाएँ। लेकिन अन्तत: इसका भी पता चल गया और उनका भी प्रवेश निषेध कर दिया गया।

मृत्यु

इतना सब कुछ सह कर भी चल-ध्यान योग से बिम्बिसार जीवित रहे। जब पुत्र को पता चला कि पिता यूँ सरलता से प्राण-त्याग नहीं करेंगें तो उसने कारागार में कुछ नाइयों को भेजा। बिम्बिसार ने सोचा कि अंतत: पुत्र को अपनी भूल का अनुभव हुआ और वह पश्चाताप कर रहा है। अत: उन्होंने नाइयों से अपनी दाढ़ी और बाल काटने को कहा ताकि वे भिक्षुवत जीवन-यापन कर पाऐं। किंतु नाइयों को इसलिए भेजा गया था ताकि वे बिम्बिसार के पैरों को काटकर उनके घावों में ,नमक, और सिरका डाल दें और तत्पश्चात् उन घावों को ,कोयलों ,से जला दें। इस प्रकार बिम्बिसार का चल-ध्यान रोक दिया गया और वे ,दु:खद मृत्यु ,को प्राप्त हुए।

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