एग्जिट पोल प्रसारित करने वाले मीडिया घरानों के खिलाफ जांच की मांग वाली याचिका खारिज

एग्जिट पोल प्रसारित करने वाले मीडिया घरानों के खिलाफ जांच की मांग वाली याचिका खारिज

एग्जिट पोल प्रसारित करने वाले मीडिया घरानों के खिलाफ जांच की मांग वाली याचिका खारिज

पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से राजनीतिक हित याचिका का मामला है।” (फाइल)

नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के तुरंत बाद एग्जिट पोल प्रसारित करने वाले मीडिया घरानों और उनके सहयोगियों/कंपनियों के खिलाफ जांच की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जनहित याचिका स्पष्ट रूप से एक राजनीतिक हित याचिका है।

“सरकार पहले ही चुनी जा चुकी है। अब हमें चुनावों के दौरान जो कुछ भी होता है, उसे बंद करना चाहिए और अब देश में शासन-प्रशासन को आगे बढ़ाना चाहिए। चुनाव आयोग इसे संभालेगा और हम चुनाव आयोग को नहीं चलाएंगे। यह स्पष्ट रूप से राजनीतिक हित याचिका का मामला है। खारिज।”

याचिका में लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान के तुरंत बाद एग्जिट पोल प्रसारित करने और निवेशकों को कथित रूप से प्रभावित करने के लिए मीडिया घरानों और उनके सहयोगियों/कंपनियों के खिलाफ जांच की मांग की गई थी, जिन्हें 4 जून को नतीजों के बाद शेयर बाजार में भारी गिरावट के कारण 31 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

जून में दायर याचिका में कहा गया था कि मीडिया घरानों ने एक जून को चुनाव के अंतिम चरण के समाप्त होने के तुरंत बाद एग्जिट पोल पर बहस शुरू कर दी और 3 जून (सोमवार) को बाजार खुलने तक आम निवेशक को शेयर बाजार में निवेश करने के लिए मनाने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप शेयर बाजार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।

इसमें कहा गया था कि एग्जिट पोल के बाद शेयर बाजार में तेजी आई, लेकिन जब वास्तविक परिणाम घोषित हुए तो इसमें भारी गिरावट आई।

याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता बीएल जैन ने कहा कि 4 जून को मतगणना हुई और शेयर बाजार में भारी गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप आम निवेशकों को 31 लाख करोड़ रुपये का भारी नुकसान हुआ।

अधिवक्ता वरुण ठाकुर के माध्यम से याचिका दायर करते हुए कहा गया था कि बाजार में भारी गिरावट के कारण 31 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जिससे समग्र भारतीय अर्थव्यवस्था और वैश्विक स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा प्रभावित होगी।

याचिका में कहा गया था, “किसी भी समाचार/बहस/कार्यक्रम के प्रसारण से किसी भी राजनीतिक दल के पक्ष या विपक्ष में पक्षपात या पूर्वाग्रह की भावना नहीं आनी चाहिए। दुर्भाग्य से अनियंत्रित और अनियमित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एक वाणिज्यिक उद्योग के रूप में काम कर रहा है और एक राजनीतिक दल को दूसरे राजनीतिक दल के खिलाफ खड़ा करता है।”

याचिकाकर्ता ने कहा था कि पूर्वानुमान/एग्जिट पोल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126 ए और भारत के चुनाव आयोग द्वारा जारी 2 अप्रैल, 2024 के दिशानिर्देशों का पूर्ण उल्लंघन है।

न्यायालय ने कहा था कि सरकार को मजबूत एग्जिट पोल और सार्वजनिक सरोकार के मुद्दों पर बहस को सख्ती से संरक्षित करना होगा।

याचिका में एक्सिस माई इंडिया, इंडिया टुडे मीडिया प्लेक्स, टाइम्स नाउ, इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस प्राइवेट लिमिटेड (इंडिया टीवी), एबीपी न्यूज प्राइवेट लिमिटेड, रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क, न्यूज नेशनल नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड, टीवी9 भारतवर्ष और एनडीटीवी के खिलाफ सीबीआई, ईडी, सीबीडीटी, सेबी, एसएफआईओ से जांच की मांग की गई थी।

याचिका में कहा गया था, “भारत की संसद ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सुचारू संचालन तथा चुनाव के दौरान चुनाव प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 को अधिनियमित किया था। लेकिन एग्जिट पोल के माध्यम से मीडिया घरानों ने कॉरपोरेट घरानों के साथ मिलीभगत करके चुनाव परिणामों में हेरफेर करना शुरू कर दिया। प्रतिवादियों का यह कृत्य लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की अवधारणा का उल्लंघन है तथा कानून के शासन में हस्तक्षेप है…”

(शीर्षक को छोड़कर, इस कहानी को एनडीटीवी स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है और एक सिंडिकेटेड फीड से प्रकाशित किया गया है।)

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